Monday, April 05, 2010

शिक्षा अनिवार्य क्यों है?

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बहुत दिनों से हिंदी मैं कुछ लिखा नहीं है | मोबाइल और इन्टरनेट ने पत्र लिखना भी बंद करवा दिया है | करीब चार साल पहले छटवे सेमेस्टर मैं हिंदी साहित्य के परीक्षा के बाद आज अचानक मन हुआ है हिंदी मैं कुछ लिखने का |
कुछ दिन पहले "बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम" लागू हुआ है | बाकी सब तो समझ मैं आता है लेकिन अनिवार्य शब्द का क्या मतलब है? अगर किसी बच्चे का पढाई में मन नहीं लगता है तो क्या उसे जबरदस्ती करके पढाया जायेगा? यह विचार अचानक ही नहीं आया है मेरे दिमाग में, बल्कि मेरे साथ पढने वाले कई ऐसे छात्र थे विद्यालय में जिनका बिलकुल भी पढने का मन नहीं करता था | एक बार मैंने भी अपने पिताजी से कहा की मुझे नहीं पढना, तो मेरा शंशय तो एक चपत में ठीक कर दिया गया | लेकिन और लड़कों को कितनी भी चपत लगाओ उनका फिर भी मन नहीं लगता था, कुछ तो कहते थे की कुछ भी कर लेंगे लेकिन पढ़ नहीं पाएंगे | उनके तर्क भी काफी समझ के होते थे | स्कूल में ५ साल संस्कृत पढने का क्या फायदा, शायद ही कभी काम आये | वही हाल कई और विषयों का था | अब लगता है बिना काम के ही पढाई गयी थी |

हाँ, एक फायदा तो होता है पढाई का, ज्ञान काम आये या न आये, रोजगार मिलने में सहूलियत तो हो जाती है | यह बात अलग है की काम में भी पढाई ज्यादा काम नहीं आती और ज्यादातर नए सिरे से ही पढना होता है, लेकिन फिर भी पता नहीं न जाने क्यों उपाधि धारकों को काम पे लिया जाता है | क्यों न सीधा जो काम करना हो उसी की प्रशिक्षा दी जाये | लेकिन इस में भी समस्या है, कभी व्यक्ति का मन अभियांत्रिकी का करता है तो कभी प्रबंधन का, और उसके बाद समाजसेवा और राजनीति का, मकसद बदलते रहते हैं | इसलिए काफी हद तक जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहता है क्योंकि लोगों को पता ही नहीं होता की उनका उद्देश्य क्या है और किस चीज की पढाई की जाये |

एक और बात, आखिर बच्चों की पढाई का दायित्व किसका है ? सरकार, परिवार, शिक्षकों का या फिर बच्चे का ? सरकार तो साल - साल में बदलती रहती है, बच्चे पढ़े या न पढ़े, बड़े होकर वोट तो देंगे ही ! परिवार वाले भी बस सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते है, बच्चे की जगह पर पढ़ तो नहीं सकते ! और शिक्षकों की तरफ से तो बच्चे पढ़े या न पढ़े उनका वेतन तो पक्का है | तो फिर आखिरी जिम्मेदारी रह जाती है स्वंय छात्रों की, अब पढाई अच्छी लगे या न लगे, पढना तो पड़ेगा, जब तक अपने आप से कुछ करने और दूसरों को भी रोजगार देने की छमता न हो और अगर भविष्य में नौकरी चाहिए तो !!

" पढ़ लो बच्चों! आजकल तो अनपढ़ों की शादी भी बड़ी मुश्किल से होती है !"----रामभरोसी मास्टरजी .

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